खरीदी के बाद भी गोदामों तक नहीं पहुंचा करोड़ों का गेहूं

भोपाल। मध्यप्रदेश की सरकार किसानों का कितना ख्याल रखती है इसका उदाहरण गेहूं खरीदी के मामले में सामने आया है। क्योंकि प्रदेश के किसानों ने न केवल सरकारी समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी में उत्साह दिखाया वहीं इस बार 77 लाख मीट्रिक टन से अधिक गेहूं सरकार को बेच दिया है। लेकिन विडंबना यह है कि किसानों से खरीदा हुआ 60 हजार मीट्रिक टन गेहूं गायब हो गया है। खरीदी बंद होने के बाद भी यह गेहूं गोदामों में नहीं पहुंचा है।
इस साल गेहूं की सरकारी खरीद के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा गेहूं के समर्थन मूल्य पर 175 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बोनस राशि देने का निर्णय लिया गया था। जिसके चलते इस साल किसानों ने बढ़ चढक़र गेहूं खरीद में हिस्सा लिया। पिछले साल जहां मप्र में किसानों से मात्र 48 लाख 38 हजार मीट्रिक टन गेहूं खरीद की गई थी वहीं इस साल किसानों ने सरकार को 77 लाख 74 हजार मीट्रिक टन गेहूं बेचा है। लेकिन जब गोदामों में जमा गेहूं का हिसाब लगाया गया तो करोड़ों रुपए के गेहूं गायब मिले हैं।

गौरतलब है कि गड़बड़ी रोकने लाख कोशिशों के बावजूद समर्थन मूल्य गेहूं खरीदी में बड़ा गोलमाल सामने आया है। रायसेन, नर्मदापुरम व उज्जैन समेत 22 जिलों में खरीदा गया 156 करोड़ कीमत का लाख क्विंटल (60 हजार मीट्रिक टन गेहूं का हिसाब नहीं मिल रहा है। उक्त गेहूं की खरीदी 15 मार्च से 5 मई के बीच हुई थी, जो गोदामों में नहीं पहुंचाया गया तो खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के अफसरों ने खोजबीन शुरू की। जब पता नहीं चला तो आयुक्त खाद्य ने 22 जिलों के कलेक्टरों को फटकार लगाते हुए आज शाम तक गेहूं गोदामों में जमा कराने को कहा है। जब तक गेहूं गोदामों में जमा का स्वीकृति पत्रक जारी नहीं हो जाता तब तक उक्त गेहूं बेचने वाले किसानों को भुगतान नहीं होगा। प्रत्येक जिलों में जिला विपणन समितियां होती हैं, जिनके अध्यक्ष कलेक्टर होते हैं। खरीदी से जुड़ी पूरी जिम्मेदारी कलेक्टरों की होती है इसलिए खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के आयुक्त कर्मवीर शर्मा ने कलेक्टरों को गेहूं जमा कराने के लिए निर्देश दिए हैं। जानकारों का कहना है कि खरीदी का स्टैंडर्ड तय है, लेकिन कुछ जिलों के खरीदी केंद्रों में अफसरों द्वारा सरकार से मिलने वाले कमीशन की अधिक राशि पाने के लिए घटिया गेहूं भी खरीदा गया। चूंकि खरीदा गया गेहूं वेयर हाउसिंग लॉजिस्टिक कॉपरिशन व अनुबंधित गोदामों में जाम करना होता है। सूत्रों के मुताबिक अब उक्त गेहूं गोदाम वाले जमा करने से मना कर रहे हैं, क्योंकि एक बार गेहूं गोदामों में जाम हो जाए तो पूरी जिम्मेदारी वेयरहाउसिंग लॉजिस्टिक कॉरपोरेशन की होती है।

गौरतलब है कि पूर्व के वर्षों में कई अफसर घटिया गेहूं खरीदकर सरकारों को नुकसान पहुंचा चुके हैं तो वेयरहाउसिंग कॉरिशन को भी हजारों करोड़ का चूना लग चुका है। सवाल यह भी उठता रहा है कि कई बार केंद्रों पर खरीदे जाने वाले गेहूं की गुणवत्ता अच्छी होती है, लेकिन उसमें कमियां बताकर गोदाम वाले जमा करने से आनाकानी करते हैं। इसी में गेहूं गीला हो जाता है। गेहूं की सरकारी खरीदी में परिवहन का काम करने वाली एजेंसियां भी कई बार देरी कर देती हैं। ये जिसका खामियाजा सरकार और किसानों को भुगतना पड़ता है। कई बार किसानों के नाम पर व्यापारियों से घटिया गेहूं खरीद लिया जाता है, जिसे बाद में औने-पौने दामों में शराब कंपनियों को बेचा जाता है। यह कई स्तर पर ढिलाई के कारण होता है। जिसके बाद गड़बड़ी की आशंका बढ़ जाती है। गेहूं की सुरक्षा और रखरखाव पर समितियों को लाखों रुपए खर्च करना पड़ रहा है। ज्यादातर समितियों और खरीदी केंद्रों के पास बाउंड्री वॉल नहीं है। इसके चलते समितियों को मवेशियों और चोरों से गेहूं को बचाने के लिए सुरक्षाकर्मियों को तैनात करना पड़ता है। इसके अलावा बारिश होने पर उसे भींगने से बचाने के लिए पन्नी और टेंट लगाना पड़ता है और बारिश के बाद उसमें हवा लगाने के लिए उसे हटाना पड़ता है। बारिश के दौरान जो अपना भींग जाता है उसे मजदूर लगाकर धूप में सुखाने की व्यवस्था कराना पड़ता है।

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