स्पेशल रिपोर्ट / पंचायत इंडिया न्यूज़
भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार के समक्ष ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति को सुचारु एवं टिकाऊ बनाना एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती बनी हुई है। इस चुनौती का समाधान खोजने हेतु राज्य सरकार अब पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) विभाग के विलय पर गंभीरता से विचार कर रही है।
जल जीवन मिशन का सुझाव:
राज्य जल जीवन मिशन द्वारा हाल ही में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय को एक महत्वपूर्ण सुझाव भेजा गया है, जिसमें कहा गया है कि ग्रामीण पेयजल योजनाओं, विशेषतः मल्टी विलेज स्कीम्स, का संचालन बेहतर ढंग से ग्राम पंचायतों द्वारा ही किया जा सकता है। मिशन का तर्क है कि पीएचई विभाग, स्थानीय जरूरतों और जवाबदेही की दृष्टि से इस कार्य को प्रभावशाली ढंग से नहीं निभा पा रहा है।
मौजूदा कार्यप्रणाली में विसंगति:
वर्तमान में मध्यप्रदेश में सिंगल विलेज स्कीम्स का क्रियान्वयन पीएचई के इंजीनियरिंग विंग (ईएनसी, एसई, ईई) द्वारा किया जाता है, जबकि मल्टी विलेज स्कीम्स जल निगम के माध्यम से संचालित की जाती हैं। इन योजनाओं के पूरा होने के पश्चात संचालन व रखरखाव ग्राम पंचायतों को सौंप दिया जाता है। यह दोहरी प्रणाली समन्वय की कमी और जवाबदेही की अस्पष्टता को जन्म देती है।
विलय से संभावित लाभ:
यदि दोनों विभागों का एकीकरण किया जाता है, तो ग्राम पंचायतों को जलापूर्ति और उससे जुड़े रखरखाव कार्यों को पीएचई के Schedule of Rates (SOR) के अनुसार स्वयं निष्पादित करने का अधिकार मिलेगा। इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया स्थानीय स्तर पर और अधिक सक्षम होगी, साथ ही तकनीकी अधिकारियों की जवाबदेही और निगरानी भी प्रभावी रूप से स्थापित की जा सकेगी।
अन्य राज्यों से प्रेरणा:
देश के कई राज्यों में पीएचई विभाग को पंचायतों के अधीन लाकर पेयजल योजनाओं को सफलतापूर्वक संचालित किया जा रहा है।
महाराष्ट्र और ओडिशा में पीएचई अधिकारी पंचायत राज संस्थाओं के अंतर्गत कार्य करते हैं,
कर्नाटक में सभी पीएचई कार्य पंचायती राज विभाग के अधीन हैं, जहां मल्टी विलेज स्कीम्स का संचालन राज्य स्तर पर और सिंगल स्कीम्स का संचालन जिला पंचायतें करती हैं,
तेलंगाना के मिशन भागीरथी में पंचायतों को आंतरिक जल संरचना का पूर्ण प्रभार दिया गया है,
तमिलनाडु और गुजरात में भी जल बोर्ड एवं पीएचई संरचनाएं जिला पंचायतों के साथ समन्वय में कार्य कर रही हैं।
एग्रीमेंट की वास्तविकता और प्रशासनिक प्रस्ताव:
वर्तमान अनुबंधों के अनुसार, पेयजल योजनाओं का संचालन और रखरखाव प्रारंभिक दस वर्षों तक ठेकेदारों द्वारा किया जाता है, जबकि गाँव के अंदरूनी ढांचे की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों पर होती है। संचालन की निरंतरता, जवाबदेही और रखरखाव की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए पीएचई विभाग का प्रशासनिक नियंत्रण पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को सौंपना एक व्यावहारिक कदम सिद्ध हो सकता है।
विभागीय एकीकरण न केवल कार्यप्रणाली को सरल बनाएगा, बल्कि योजनाओं के “ग्रामीण स्वामित्व” की अवधारणा को भी बल देगा। जल जीवन मिशन के वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि केंद्र सरकार जल्द ही मध्यप्रदेश सरकार को इस दिशा में आवश्यक निर्देश दे सकती है। वर्तमान प्रणाली में मौजूद खामियों को दूर करने और भविष्य की चुनौतियों के लिए एकीकृत, पारदर्शी और विकेन्द्रीकृत तंत्र का निर्माण अनिवार्य हो गया है।
