पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल ने ग्रामीण भारत के भविष्य को लेकर साझा की नई सोच की अवधारणा, ‘रूरल कॉलोक्वी’ के आयोजन में ग्राम पंचायत हेल्पडेस्क की शुरुआत

ब्यूरो रिपोर्ट मध्यप्रदेश / पंचायत इंडिया न्यूज़

भोपाल। एक सुरक्षित और सुखद जीवन केवल भौतिक साधनों पर नहीं, बल्कि प्रकृति के संसाधनों के विवेकपूर्ण, न्यायसंगत और सतत उपयोग पर आधारित होता है. मध्य प्रदेश नदियों की उद्गम स्थली होने के बावजूद भी राज्य में आवश्यकता होने पर पेयजल और सिंचाई के लिए पर्याप्त जल की उपलब्धता नहीं हो पाती है. इसी संदर्भ में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने “रूरल कॉलोक्वी” में ग्रामीण भारत के भविष्य को लेकर एक नई सोच साझा की. यह कार्यक्रम ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (TRI) द्वारा भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (IIFM), भोपाल के सहयोग से आयोजित किया गया.

अपने विचार व्यक्त करते हुए मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा, “तकनीक हमारे जीवन को बेहतर बना सकती है, लेकिन वह मानव मूल्य, श्रम और संवेदना का स्थान नहीं ले सकती.” उन्होंने सरकार की योजनाओं में अत्यधिक भौतिकवादी दृष्टिकोण की ओर संकेत करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि हम जंगलों, वन्यजीवों और नदियों जैसे अमूल्य संसाधनों के संरक्षण को प्राथमिकता दें. उन्होंने नर्मदा परिक्रमा पथ और पारंपरिक जीवन मूल्यों की चर्चा करते हुए बताया कि एमपी में 92 नदियों के उद्गम स्थल चिह्नित किए जा चुके हैं, जिनमें से अधिकांश आदिवासी क्षेत्रों में स्थित हैं.

कार्यक्रम में उन्होंने “ग्राम पंचायत हेल्पडेस्क” की भी शुरुआत की, जिसकी प्रेरणास्रोत बनीं रेशमा निनामा, जो अलसिया, पेटलावद से आईं और ग्राम स्तर पर परिवर्तन का नेतृत्व कर रही हैं. इस अवसर पर पद्मश्री जनक पल्टा ने अपने जीवन की यात्रा साझा की, कैसे उन्होंने बरली विकास संस्थान की स्थापना की, एक ईंट से संपूर्ण हरित परिसर बनाया, जहां लड़कियों को साक्षरता, स्वास्थ्य, नेतृत्व, नवीकरणीय ऊर्जा, फ़ोटोग्राफी और उद्यमिता की शिक्षा स्थानीय भाषा में दी जाती है.

डॉ. विश्वास ने कहा कि सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को लागू करने की शुरुआत ग्रामीण भारत से ही होनी चाहिए. महिलाओं को आज भी संसाधनों पर अधिकार नहीं है, जबकि वे सबसे बेहतर प्राकृतिक संसाधन प्रबंधक हैं. उन्होंने ज़ोर दिया कि हमें सांस्कृतिक अवरोधों को समझना होगा और महिला नेतृत्व को प्रोत्साहित करना होगा. इस संवाद के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ कि ग्रामीण भारत का भविष्य तब ही उज्ज्वल होगा जब उसकी परिकल्पना स्थानीय सहभागिता, पारंपरिक ज्ञान और महिलाओं के नेतृत्व से की जाएगी.

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