ब्यूरो रिपोर्ट बड़वानी। पंचायत इंडिया न्यूज़
बड़वानी। बड़वानी जिले में जल जीवन मिशन और पुनर्वास व्यवस्थाओं की जमीनी सच्चाई एक बार फिर सवालों के घेरे में है। जिला मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर अंजड़ तहसील की छोटा बड़दा पुनर्वास बसाहट में गंभीर जल संकट सामने आया है। बसाहट के आधे से अधिक हिस्से में आज तक पीने के पानी की कोई स्थायी और सुरक्षित व्यवस्था नहीं हो पाई है, जिसके चलते 200 से अधिक परिवार एक खुले और बिना मुंडेर वाले कुएं का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार सरकार की महत्वाकांक्षी जल जीवन मिशन योजना के तहत घर-घर नल लगाए तो गए, लेकिन ये नल केवल कागजों में ही चालू हैं। वास्तविकता यह है कि नलों से एक बूंद पानी नहीं आता। मजबूरी में ग्रामीण कुएं के पानी पर निर्भर हैं, जो खुले में है और आसपास की गंदगी से लगातार दूषित होता रहता है। बसाहट निवासी गेंदा बाई का कहना है कि कुएं के आसपास बड़ी संख्या में परिवार रहते हैं और सभी इसी पानी का उपयोग पीने के लिए कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है।

ग्रामीणों का आरोप है कि इस गंभीर समस्या को लेकर कई बार जनप्रतिनिधियों, पंचायत और संबंधित अधिकारियों को अवगत कराया गया, लेकिन हर बार केवल आश्वासन ही मिले। पुनर्वास बसाहट निवासी हितेश राठौड़ ने बताया कि सांसद विकास निधि से कभी-कभार टैंकरों के जरिए पानी पहुंचाया जाता है, लेकिन यह व्यवस्था अस्थायी और नाकाफी साबित होती है। स्थायी समाधान न मिलने से ग्रामीणों में भारी नाराजगी है। आक्रोशित ग्रामीणों ने जनप्रतिनिधियों पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए तीखी प्रतिक्रिया तक व्यक्त की है।
ग्रामीणों का कहना है कि जीवन के लिए पानी सबसे जरूरी है। पानी साफ हो या गंदा, मजबूरी में उन्हें वही पीना पड़ता है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि वर्षों से पुनर्वास बसाहट में रह रहे इन परिवारों को आज तक स्वच्छ पेयजल की स्थायी सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जा सकी है। इससे स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है, लेकिन जिम्मेदारों की उदासीनता जस की तस बनी हुई है।
इस मामले में ग्राम पंचायत छोटा बड़दा के सरपंच पप्पू डाबी ने बताया कि बसाहट में पानी की टंकी बनी हुई है, लेकिन एक ही टंकी से पूरी बसाहट में पानी की आपूर्ति संभव नहीं हो पाती। उन्होंने यह भी कहा कि कुएं की सफाई करवाई गई थी और पानी साफ करने के लिए मोटर लगाने का प्रयास किया गया, लेकिन ग्रामीणों ने उसे लगाने नहीं दिया। सरपंच के अनुसार पुनर्वास बसाहट में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी एनवीडी विभाग की है।
वहीं ग्राम पंचायत बड़दा के सचिव डोंगर खेड़े ने भी बसाहट में पानी की टंकी होने की बात कही और सवाल उठाया कि यदि कुछ लोग गंदा पानी पी रहे हैं तो पंचायत क्या कर सकती है। उन्होंने भी पूरे मामले की जिम्मेदारी एनवीडीए यानी नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण विभाग पर डाल दी।
ग्रामीण रहीसा बाई ने बताया कि वे पिछले करीब दस वर्षों से इस बसाहट में रह रही हैं, लेकिन आज तक पानी की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं हो सकी है। उनके अनुसार सरपंच और सचिव मौके पर आते हैं, निरीक्षण कर लौट जाते हैं, लेकिन समाधान के नाम पर कुछ नहीं होता। पंचायत एनवीडी विभाग का हवाला देती है और एनवीडी विभाग पंचायत के पास भेज देता है। इस आपसी टालमटोल के चलते ग्रामीण मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान हो चुके हैं।
इधर एनवीडी-पीएचई विभाग के अधिकारी गोविंद उपाध्याय ने बताया कि मीडिया के माध्यम से उन्हें जानकारी मिली है कि छोटा बड़दा बसाहट में लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। उन्होंने दावा किया कि बसाहट में पानी की पर्याप्त व्यवस्थाएं की गई हैं, टंकी और ट्यूबवेल भी लगाए गए हैं। हालांकि विभाग को अब तक ऐसी कोई औपचारिक शिकायत नहीं मिली थी। अधिकारी ने कहा कि मामले की जांच कर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
छोटा बड़दा पुनर्वास बसाहट का यह मामला जल जीवन मिशन, पुनर्वास नीति और प्रशासनिक समन्वय की वास्तविक स्थिति को उजागर करता है। अब बड़ा सवाल यह है कि जांच के बाद वास्तव में स्थायी समाधान निकलेगा या फिर यह मामला भी आश्वासनों और फाइलों के बीच दबकर रह जाएगा, जबकि ग्रामीण गंदा पानी पीने को मजबूर रहेंगे।
