भ्रष्टाचार मामले में संलिप्त सरपंच से वित्तीय शक्तियां वापस ले सकती है जिला पंचायत : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट

स्पेशल रिपोर्ट : अमित श्रीवास्तव / 9826050465

जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि जिला पंचायत का मुख्य कार्यपालन अधिकारी भ्रष्टाचार के मामले में संलिप्त पाए गए सरपंच की वित्तीय शक्तियां वापस लेने के आदेश जारी कर सकता है। मध्य प्रदेश पंचायत (मुख्य कार्यपालन अधिकारी की शक्तियां एवं कार्य) नियम का हवाला देते हुए जस्टिस विशाल धगत ने कहा, “उक्त प्रावधानों के अनुसार, मुख्य कार्यपालन अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि पंचायत के धन या संपत्ति को कोई नुकसान न हो, इसलिए मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत को भ्रष्टाचार के मामले में संलिप्त पाए गए सरपंच की वित्तीय शक्तियां वापस लेने के आदेश जारी करने का अधिकार है। कार्रवाई केवल पंचायत के धन की हानि को रोकने के लिए की गई है। इसके अलावा, नियम 4 के उपनियम (xvi) के तहत उन्हें पंचायत के खातों की लेखापरीक्षा के दौरान पंचायत के संज्ञान में लाए गए किसी भी दोष, अनियमितता को दूर करने के लिए कदम उठाने का भी अधिकार है। इन परिस्थितियों में, यह नहीं कहा जा सकता है कि मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत को सरपंच की वित्तीय शक्तियां वापस लेने का अधिकार नहीं है।” संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका दायर कर उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत सरपंच की वित्तीय शक्तियां वापस ले ली गई थीं और पंचायत समन्वयक को वित्तीय शक्तियां दे दी गई थीं। याचिकाकर्ता को 50,000 रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद उक्त आदेश पारित किया गया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि जवाब पर विचार किए बिना और याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए बिना, प्रतिवादी क्रमांक 3/मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने विवादित आदेश पारित कर दिया, जिसके तहत याचिकाकर्ता की वित्तीय शक्तियां वापस ले ली गईं। आगे कहा गया कि अपराध दर्ज होने के कारण सरपंच की वित्तीय शक्तियां वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है। इसके विपरीत, प्रतिवादी क्रमांक 2/पुलिस अधीक्षक के वकील ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता भ्रष्टाचार के मामले में संलिप्त पाया गया है, इसलिए मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत, शहडोल ने याचिकाकर्ता से वित्तीय शक्तियां वापस लेने का आदेश पारित करके सही किया है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने मध्य प्रदेश पंचायत (मुख्य कार्यकारी अधिकारी की शक्तियां और कार्य) नियम, 1995 का हवाला दिया। न्यायालय ने कहा कि उक्त नियम के नियम 4 में मुख्य कार्यकारी अधिकारी को पंचायत की सभी गतिविधियों के निष्पादन की निगरानी और नियंत्रण करने की शक्ति दी गई है। इसमें कहा गया है कि मुख्य कार्यकारी अधिकारी पंचायत के सभी कार्यों और विकास योजनाओं के त्वरित निष्पादन के लिए आवश्यक उपाय करेगा, पंचायत की ओर से दीवानी या आपराधिक कार्यवाही शुरू करेगा या संचालित करेगा और उसे पंचायत निधि से धन निकालने और वितरित करने का भी अधिकार है। न्यायालय ने नियम 4, उप-नियम (xiii) का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि मुख्य कार्यकारी अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि पंचायत के कर्मचारियों के कब्जे या प्रभार में किसी भी पंचायत के धन या संपत्ति को नुकसान न पहुंचे और उसे पंचायत या स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।

प्रावधानों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि मुख्य कार्यकारी अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि पंचायत के धन या संपत्ति को कोई नुकसान न हो। इसलिए, न्यायालय ने माना कि मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला पंचायत को भ्रष्टाचार के मामले में संलिप्त पाए गए सरपंच की वित्तीय शक्तियों को वापस लेने का आदेश जारी करने का अधिकार है। इसलिए, याचिका खारिज कर दी गई। इसके विपरीत, प्रतिवादी संख्या 2/पुलिस अधीक्षक के वकील ने प्रस्तुत किया कि चूंकि याचिकाकर्ता भ्रष्टाचार के मामले में संलिप्त पाया गया है, इसलिए मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला पंचायत, शहडोल ने याचिकाकर्ता से वित्तीय शक्तियों को वापस लेने का आदेश पारित किया है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने मध्य प्रदेश पंचायत (मुख्य कार्यपालक अधिकारी की शक्तियां एवं कार्य) नियम, 1995 का हवाला दिया। न्यायालय ने कहा कि उक्त नियम के नियम 4 में मुख्य कार्यपालक अधिकारी को पंचायत की सभी गतिविधियों के क्रियान्वयन की निगरानी एवं नियंत्रण का अधिकार दिया गया है। इसमें कहा गया है कि मुख्य कार्यपालक अधिकारी पंचायत के सभी कार्यों एवं विकास योजनाओं के त्वरित क्रियान्वयन के लिए आवश्यक उपाय करेगा, पंचायत की ओर से दीवानी या फौजदारी कार्यवाही आरंभ करेगा या संचालित करेगा तथा उसे पंचायत निधि से धन निकालने एवं वितरित करने का भी अधिकार है। न्यायालय ने नियम 4 के उपनियम (xiii) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि मुख्य कार्यपालक अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि पंचायत के कर्मचारियों के कब्जे या प्रभार में किसी भी पंचायत के धन या संपत्ति को नुकसान न पहुंचे तथा उसे पंचायत या स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाए। प्रावधानों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि मुख्य कार्यकारी अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि पंचायत के धन या संपत्ति को कोई नुकसान न हो। इसलिए न्यायालय ने माना कि मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला पंचायत को भ्रष्टाचार के मामले में संलिप्त पाए जाने वाले सरपंच की वित्तीय शक्तियों को वापस लेने का आदेश जारी करने का अधिकार है। इसलिए याचिका खारिज कर दी गई।

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